Friday, April 16, 2010


******************होने थे जितने खेल मुक़दर के हो गए , हम टूटी नाव ले समुंदर के हो गए ,खुशबु मेरे हाथ को छुकर गुज़र गयी ,हम फूल सबको बाँट के खुद पत्थर के हो गये ***********॥ लिखना था आज वो समय मिल गया..........................कुछ इस तरह लिख दिया की ................सब कुछ लिख दिया ...................

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