Tuesday, March 17, 2009

मुमकिन मौत है नामुमकिन ज़िन्दगी नही ..... ........



"मौत" और ज़िन्दगी को किसने अलग किया वो तो अपने पास है ......पर वह ज़िन्दगी मैं मौत कुछ खास है ,मुमकिन तो है मौत पर नामुमकिन है "ज़िन्दगी " पर जो जीने के लिए खास है ,वो एक दुसरे का साथ है ....


वक्त कहता है --दिन बदल जाते हैं पर आने वाली मौत कभी नही बदलती है ,पर उस मौत को प्यार से हराकर


ज़िन्दगी को जीत सकते हैं ...जो इस सच को जान लिया उसने ज़िन्दगी और मौत के उस पार की ज़िन्दगी जिए ली ..... कहते हैं की मौत साथ -साथ चलती है तो ज़िन्दगी किस के साथ चलती है .....ये किसे पता है तो बताना .....अब तो सफ़र हर समय मुझसे पूछता है की मंजिल दूर नही तो मंजिल से दूर होता क्यों जा रहा है..........


इस लिए तो मुमकिन मौत पर नामुमकिन ज़िन्दगी कट रही है................??????.


अब आप की बारी है .............मुझे बताने की.............इंतज़ार रहेगा .....अलविदा कहता हूँ ........




अब कुछ अलग विषय पर मिलूँगा ..............................

3 comments:

दिगम्बर नासवा said...

Baoot sundar likha hai. Shabdon ka sundar prayog.........

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

wah, narayan narayan

रवीन्द्र प्रभात said...

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है .नियमित लिखते रहें इससे संवाद-संपर्क बना रहता है , ढेर सारी शुभकामनाएं !