Saturday, October 25, 2008

छूट चुकी है ज़िन्दगी की रेल ......




"जा चुके है सब और वही खामोशी छायी है,पसरा है हर ओर सन्नाटा, तन्हाई मुस्कुराई है, छूट चुकी है रेल ,चंद लम्हों की तो बात थी,
क्या रौनक थी यहॉं,जैसे सजी कोई महफिल खास थी,
अजनबी थे चेहरे सारे,फिर भी उनसे मुलाक़ात थी,
भेजी थी किसी ने अपनाइयत,सलाम मे वो क्या बात थी,
"एक पल थे आप जैसे क़ौसर,अब बची अकेली रात थी,
चलो अब लौट चलें यहॉं से,छूट चुकी है रेलये अब गुज़री बात थी,
काग़ज़, करते बयान्‍,इनकी भी किसी सेदो पल पहले मुलाक़ात थी,
बढ़ चले क़दम,कनारे उन पटरियोंकहानी जिनके रोज़ ये साथ थी,
फिर आएगी दूजी रेल,फिर चीरेगी ये सन्नाटाजैसे जिन्दगी से फिर मुलाक़ात थी,
लौटेंगे और,भारी क़दमों से,जेसेकोई गहरी सी बात थी,
छूट चुकी है रेल,अब सिर्फ काली स्याहा रात थी
....... अब आप लोग समझ सकते है ज़िन्दगी के रफ़्तार को ........

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